आज ट्विटर और फेसबुक के माध्यम से झारखंड में संपन्न हुवे प्रशिक्षण कार्यक्रम पर नजर गयी. जानी पहचानी सी एक तस्वीर पर जाकर नजर टिक गयी. व्हील चेयर पर बैठा एक लड़का अपने आस पास बैठे कुछ द्रिस्तिहीन बच्चों को एंड्राइड टेबलेट चलन सिखा रहा था. भारत के सुदूर क्षेत्र में भी नविन तकनीकी की अलख जलाने के जोशो खरोश को देखकर जी चाह गया की एक बार इस प्रशिक्षण के बारे में भी बात की जाए.
पेश कर रहा हु सत्यजीत से बातचीत के आधार पर इस प्रशिक्षण के बारे में उनकी राय और झारखण्ड में दृष्टिहीन छात्रों का कैसा होगा भविष्य .
फोने उठाते ही चिर परिचित से आवाज़ सुनाई दी और जब चर्चा इस प्रशिक्षण के बारे में हुई तो वे बड़े उत्साहित दिखे. सत्यजीत ने बताया की रांची स्थित रिसोर्स सेंटर में उन्होंने लगातार ये प्रयास किये हैं की बच्चों को नवीनतम तकनिकी से अवगत कराया जाए. बात करने पर पता चला की विगत कुछ समय में इन छात्रों के लिए नवीनतम तकनिकी से बनी हुई पुस्तकें भी आ रही हैं जिन्हें मोबाइल और लैपटॉप पर आसानी से पढ़ा जा सकेगा. आने वाले सत्र में सत्र के पहले दिन ही हर एक दृष्टिहीन छात्र के हाथ में पुस्तक होगी. सूचना वाकई हर्ष वाली थी. इन बढते कदम से की गयी मेहनत का पता चलता है. आज़ादी के तकरीबन ७० साल बाद बिरसा की भूमि पर इस प्रगति से मैं खुश हूँ.
चलते चलते आपको ये बता दूं की ये पोस्ट क्यों महत्वपूर्ण है. सत्यजीत खुद एक दिव्यांग हैं और दृष्टिहीन बच्चों को नवीनतम तकनिकी से अवगत कराना उनका पैशन है. इन्होने पूर्व में सुगम्य पुस्तकों बनाई थीं सुगम्य पुस्तकालय के स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई थी. सत्याजीत को उनके कार्यों के लिए अग्रिम बधाई.

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